अगर सारे राज्यों से डेटा मंगाएं तो पता चलेगा कि लाख से ज़्यादा नौकरियां कोर्ट केस में फंसी हैं. ज़रूरी नहीं कि कोर्ट के कारण ही लंबित हों, कई बार जांच पूरी न होने के कारण भी ये नौकरियां फंसी हुई हैं.
दलाली, धांधली, पेपर लीक, ग़लत सवाल जैसे आरोपों के बग़ैर शायद ही कोई परीक्षा पूरी होती है. ये सब न हो तो भी बहुत सी परीक्षाएं फार्म भरने के बाद नहीं होती हैं. कई मामलों में एक परीक्षा को संपन्न होने में एक साल से लेकर 4 साल तक लग जाते हैं.
इन चयन आयोगों की परीक्षाओं का डेटा जोड़ लेंगे तो पता चलेगा कि इन्होंने मिलकर करोड़ों छात्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया है. हमने नौकरी सीरीज़ में हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं के हाल बताए, आयोग ने जवाब नहीं दिया.
सिस्टम के भीतर सड़न और मौसम नहीं बदलता है. सरकार बदलती है जो बादलों की तरह उड़ती हुई आती है और धूप छांव खेलती हुई चली जाती है. जिस सिस्टम के कमरों में बैठने के लिए नेता सारा ज़ोर लगा देते हैं वही अब पूछते हैं कि नौजवान सरकार की नौकरी के भरोसे क्यों बैठे हैं. सरकार यह नहीं कहती है कि हमारा भरोसा मत रखो, हम नौकरी नहीं देंगे, उल्टा भरोसा रखने वाले से ही पूछती है कि ये तो बताओ की तुम हम पर भरोसा क्यों करते हो. नौजवानों ने कभी पूछा नहीं कि तुम भी तो बताओ कि सरकार में जाने के लिए फिर क्यों दिन रात मरते हो. सवालों के दौर में इस राजनीति के पास कोई आइडिया नहीं बचा है. वह लगातार थीम की तलाश में है जिसपर बहस हो सके.
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